Monday, April 18, 2016

Majaaz's 'Hum pee bhi gaye chhalka bhi gaye'

Oh Majaz !!

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तस्कीन-ए-दिल-ए महजूँ न हुई वो सई-ए-करम फ़रमा भी गए
इस सई-ए-करम को क्या कहिये, बहला भी गए, तड़पा भी गए

[Wasn't even close to being satisfied, my heart, and she had left, showering favour
But what can be said of this heavenly favour, that caresses you but tortures too]

हम अर्ज़-ए-वफ़ा भी कर न सके, कुछ कह न सके कुछ सुन न सके
याँ हमने ज़बां ही खोली थी, वाँ आँख झुकी शर्मा भी गए

[Couldn't even express the love, I was rendered deaf and dumb
Just as I uttered the first syllables, those eyes fall and she shied away]

रुदाद-ए-ग़म-ए-उल्फ़त उनसे हम क्या कहते क्यूँ-कर कहते
एक हर्फ़ न निकला होंठों से और आँख में आंसू आ भी गए

[Now why would I narrate those sorrowful stories of love to her and How? Hardly a word had left my lips and tears welled up in my eyes]

इस महफ़िल-ए-कैफ़-ओ-मस्ती में, इस अंजुमन-ए-इरफ़ानी में
सब जाम-ब-कफ़ बैठे ही रहे, हम पी भी गए छलका भी गए !

[In this august company, this gathering of the passionate
they kept holding onto their glasses brimful, waiting! Me? I drank away and spilled some too, for good measure! ]





[ Series : Kehkashaan (DD), Poet : Asrar Ul Haq Majaz, Singer: Jagjit Singh ]

Sunday, April 17, 2016

Some fascinating insights into caste and linguistics... Sanskrit and Prakrits

भाषा का समाजशास्त्र (Bhasha ka Samaajshastra)भाषा का समाजशास्त्र by Rajendra Prasad Singh (राजेंद्र प्रसाद सिंह )
My rating: 4 of 5 stars

Some fascinating insights into caste and linguistics... Sanskrit and Prakrits, how caste hierarchies impact a 'literary' language and how they get implanted on the language of populace.


१. मागधी प्राकृत के साथ संस्कृत आचार्यों के दोयम दर्जे का व्यवहार क्यूंकि वे समाज के हाशिये के जातियों की भाषा थी, का उदाहरण संस्कृत नाटकों में मिलता है, जिसमे निम्न श्रेणी के पात्र प्राकृत बोलते हैं, मां प्राकृत बोलती है और बेटा संस्कृत !
२. वैदिक आर्यों के लिए मगध क्षेत्र ‘अनार्यों’ की धरती थी, जिसके वासी ‘कीकट’ थे, उनकी भाषा ‘कर्णकटु’ और ‘कर्मनाशा’ नदी आर्य भूमि की सरहद, जिसे पार करना निषेध था | समय के साथ जनसँख्या दबाव में उन्हें बढ़ना पड़ा, कर्मनाशा भी पार हुई, कीकट प्रदेश में ‘पवित्र’ स्थलों की स्थापना मजबूरन करनी पड़ी | शायद इसी सेलेक्टिव ऑक्यूपेशन का साम्राज्यवादी तरीका बाद में अंग्रेजों ने भी अपनाया |
३. भोजपुरी कृषि और श्रम संस्कृति की भाषा है, कामगारों, किसानों, मजदूरों की | यदि आधुनिक युग के संयत्र दरकिनार कर दें, तो कृषि संस्कृति का मुख्य आधार बैल है, जिसे रंग, आयु, सींग पर वर्गीकृत करने वाले कई विशेषण प्रचलित हैं : ललका, उजरका, करिआवा, धावर, गोल...
४. श्रम संस्कृति में सुबह के महत्व के कारण, सुबह और उसके आस पास के समय के लिए बहुत शब्द हैं : अन्हमुन्हारे, भोर, भोरहरिये, किरिन फुटले, बिहाने, फह फटले, झलफलाहे, सेकराहे, मुहलुकान आदि | वहीँ संस्कृत के शब्दावली में देवी देवताओं का वर्चस्व था तो शिव के ही २००० नाम है, विष्णु के १६००, इंद्रा के ४५०...
५. Loan words कैसे लोकमानस में कुछ परिवर्तनों के बाद प्रचलित होते हैं इसके कुछ उदाहरण :
- Box से बाक्स, बकसा , Honorary Magistrate से अनेरिया मजीस्टेट, Royal से ‘रावल’ और फिर ‘राऊर’, अरबी ‘फज्र’ से ‘फजिले’, फ़ारसी ‘खिश्म’ से ‘खीस’ (क्रोध), तुर्की ‘बुलाक’ से बुलाकी, पुर्तगाली ‘balde’ से बाल्टी |
- ‘चट-चट’ की आवाज़ से चटकी (चप्पल), फट-फट की आवाज़ से फटफटिया (मोटरसाइकिल), छू-छू की आवाज़ से छुछुनर (चूहा)|
६. Huns और उज्बेकों के आगमन पर नस्लभेदी विशेषणों का प्रचलन : ‘हुन्हड़ा’ जोकि लुटेरे या दबंग व्यक्ति का पर्याय है और ‘उजबक’ जो की मूर्ख का ! ईरानियों के प्रति दृष्टिकोण बदलने से देवतावाची ‘असुर’ का पर्याय ‘राक्षस हो गया |
७. समाज में जैसे जैसे वर्ग भेद और उंच नीच की जटिलताएं गहराने लगती हैं, भाषा में भी स्तर भेदक अभिव्यक्तियाँ कायम होने लगती हैं | जैसे अंग्रेजी में मध्यम पुरुष के लिए दो शब्द हैं : Thou और You, संस्कृत में ‘त्वं’, ‘भवत’, वहीँ मुंडा भाषाओँ में कोई नहीं | सांथाली में आदर के लिए अलग सर्वनाम नहीं है, तो क्या आदिम समाज ज्यादा समतामूलक था ?

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