Tuesday, April 16, 2013

दास्तान-ए-ताहिर...छोटी सी नुमाइश

( शायरी # 3 )


ग़ज़ल ~ 1


तू ख्वाब है, मैं ख्याल हूँ, तू है संग-दिल तो तराश दूँ॰

तुझे चाँद-तारों में ले चलूँ, तुझे चाँदनी का लिबास दूँ॰

यूँ मेरी नज़र से नज़र मिला, कि मेरी नज़र में नज़र भी आ.
तुझे आज तक ये खबर नहीं, मैं तेरी नज़र के ही पास हूँ.

तेरी जुस्तजू, तेरी आरजू, मेरे दिल में तू, मेरे रूबरू.
कभी घट गयी, कभी बढ़ गयी, जो बुझी नहीं, वही प्यास हूँ.

जिसे चाहा था, उसे माँगा था, वो मिला नहीं, तो गिला नहीं.
जो भटक रहा है, इधर-उधर, उसी हमसफ़र की, तलाश हूँ.

तू भी कम नहीं, कोई ग़म नहीं, मेरी आँख "ताहिर", नम नहीं.
ये ख़ुशी के मोती, उभर रहे, तुझे वहम है, मैं उदास हूँ.

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दिल में हूँ, नज़रों से बहुत दूर नहीं हूँ.
ग़म के गलीचों में भी,  रंजूर नहीं हूँ.


महफिलों को छोड़ना, मेरा नसीब था.
मशरूफ हूँ ज़रूर, पर मगरूर नहीं हूँ.

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तेरी हसरत, मेरी उलफ़त, का सबब बन बैठी.
मेरी फितरत, तेरी नफरत, का सबब बन बैठी.

मैं भी शैदाई था तेरा, मगर था मुफलिस भी.
मेरी ग़ुरबत, मेरी तुरबत, का सबब बन बैठी.
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गलियों में भौंकने वाले, दरबार सजाये बैठे हैं.

दर-दर फिरने वाले, व्यापार जमाये बैठे हैं.

थी जिनके पास, खुद्दारी, ज़मीर की दौलत.

कितने अहमक थे, घर-वार गँवाए बैठे हैं.

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ग़ज़ल ~ 2

वो इश्क फरमाने की बात करते हैं.
और दुनिया-ज़माने की बात करते हैं.

फितरत में वफ़ा का कोई वजूद नहीं.
और दिल लगाने की बात करते हैं.

चूड़ियों का बोझ संभाला नहीं जाता.
और ग़म उठाने की बात करते हैं.

लिबास तौबा! जिस्म की नुमाइश है.
और मुँह छुपाने की बात करते हैं.

काँच के पर्दों में क़ैद नशीली आँखें.
और जाम पिलाने की बात करते हैं.

उठ के जाना कुबूल नहीं पहलू से.
और हाथ छुड़ाने की बात करते हैं.

हासिल है शौहरत रकीबों में "ताहिर"
और साथ निभाने की बात करते हैं.

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ग़ज़ल ~ 3

तन्हाई में जब उसने, ख़त मेरा पढ़ा होगा.
दिल उसका भला कैसे, काबू में रहा होगा?

जब मेरी मुहब्बत में, दिल उसका जला होगा.
बहती हुयी आँखों से, काजल ना बचा होगा.

सखियों ने बहुत उसको, मजबूर किया होगा.
तब नाम मेरा उसने, शरमा के लिए होगा.

लुटने का मेरे उसको, जब इल्म हुआ होगा.
माथे पे हसीं आँचल, शायद ही रुका होगा.

जिस वक़्त किताबों में, ख़त मेरा मिला होगा.
सीने से लगाकर फिर, होठों से छुआ होगा.

मिलने की तड़प उसको, बेचैन किये होगी.
मजबूरी में फिर तकिया, बाहों में लिया होगा.

यादों में मेरी उसने, कुछ शेर लिखे होंगे.
और नामे-ग़ज़ल उसने, "ताहिर" ही रखा होगा.
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( Disclaimer : All works above are creations of Mr. R.Tahir Khan )

2 comments:

  1. A marvellous piece... Your effort to quote Mr. Tahir is just a drop to the attention of the readers that genius deserves.

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    1. Thankyou Himanshu ji. :)
      Am happy that you liked the collection. There may be more to come in the future.

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