Tuesday, June 25, 2013

हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी, कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले।

मिर्ज़ा ग़ालिब 




हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले

बहुत निकले मेरे अरमाँ, लेकिन फिर भी कम निकले


डरे क्यों मेरा कातिल क्या रहेगा उसकी गर्दन पर

वो खून जो चश्म-ऐ-तर से उम्र भर यूं दम-ब-दम निकले


निकलना खुल्द से आदम का सुनते आये हैं लेकिन

बहुत बे-आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले


भ्रम खुल जाये जालीम तेरे कामत कि दराजी का

अगर इस तुर्रा-ए-पुरपेच-ओ-खम का पेच-ओ-खम निकले


मगर लिखवाये कोई उसको खत तो हमसे लिखवाये

हुई सुबह और घर से कान पर रखकर कलम निकले


हुई इस दौर में मनसूब मुझसे बादा-आशामी

फिर आया वो जमाना जो जहाँ से जाम-ए-जम निकले


हुई जिनसे तव्वको खस्तगी की दाद पाने की

वो हमसे भी ज्यादा खस्ता-ए-तेग-ए-सितम निकले


मुहब्बत में नहीं है फ़र्क जीने और मरने का

उसी को देख कर जीते हैं जिस काफिर पे दम निकले


जरा कर जोर सिने पर कि तीर-ऐ-पुरसितम निकले

जो वो निकले तो दिल निकले, जो दिल निकले तो दम निकले


खुदा के वासते पर्दा ना काबे से उठा जालिम

कहीं ऐसा न हो याँ भी वही काफिर सनम निकले


कहाँ मयखाने का दरवाजा 'गालिब' और कहाँ वाइज़

पर इतना जानते हैं, कल वो जाता था के हम निकले


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चश्म-ऐ-तर - wet eyes

खुल्द - Paradise

कूचे - street

कामत - stature

दराजी - length

तुर्रा - ornamental tassel worn in the turban

पेच-ओ-खम - curls in the hair

मनसूब - association

बादा-आशामी - having to do with drinks

तव्वको - expectation

खस्तगी - injury

खस्ता - broken/sick/injured

तेग - sword

सितम - cruelity

क़ाबे - House Of Allah In Mecca

वाइज़ - preacher

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